श्री चैतन्य महाप्रभुजी ने गोपी भाव से श्री कृष्ण को भजने की बात की है ! और उन्होंने आगे जाके यह भी कहा है के कृष्ण प्रेम की परिपक्वता तब है जब आप श्यामसुंदर को बालकृष्ण के रूप में भजने लग जाते है....कितनी गहराई है इस बात में, क्योंकि यह तभी संभव है जब मांगने की कुछ कामना शेष नहीं रहती.. अतिउत्तम !! किन्तु इसका अर्थ यह नहीं के आप गोपी भाव को त्याग दें , कृष्णप्रेम की पूर्णता क्या है वह गोपियाँ अपने प्रेम से बता रहीं हैं..कि कृष्णप्रेम में तुम अपना, पराया, पति, पुत्र सब भूल जाते हो , और कृष्ण की लीलाओं का चिंतन करते करते आंसू रुकना बंद नहीं होते या फिर आनंद पल पल बढ़ता रहता है..
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